बड़ा ही मनोरम दृश्य है | एक नदी का किनारा, चारों ओर घने हरे-भरे पेड़ और चिड़ियों की चहचहाहट के बीच पत्तियों से छन के आती चाँद की चंचल किरणे | कुछ बात है इस दृश्य में | नदी की निरंतर बहती धारा में चांदी सी चमकती चांदनी | जब बड़े-बड़े पत्थर नदी के बहाव को रोकते तो एक संघर्ष की गूँज सुने देती, दूर कहीं अपने घोंसलों को लौटते थके पक्षियों की मधुर वाणी से वातावरण में फैली उथल-पुथल का आभास होता है | परन्तु एक अलग सी शांति व्याप्त है इस दृश्य में | जहाँ हम जा सकते हैं अपने आस-पास की दुनिया से कोसों दूर; कुछ क्षण के लिए केवल अपने साथ |

कितनी आसानी से नदी ने अपने भीतर समां रखी है एक अलग दुनिया | भांति-भांति के प्राणियों का कोलाहल तो ज़रूर है पर फिर भी एक समरसता है उस जीवन में | क्या कारण हो सकता है इसका?क्या कारण है की हम,पृथ्वी के सबसे विकसित प्राणी, भी इस समरसता से कोसों दूर हैं? एक आवाज़ मुझे पुकारती है | कदाचित यही है उस प्रश्न का उत्तर | जितनी आवाजें,जितने विचार, उतने ही मत-भेद | मुझे दुनिया से शिकायत नहीं है मुझे,क्यूंकि मैं भी एक हिस्सा हूँ इसी दुनिया की | पर आज इस वातावरण में फैली शान्ति को महसूस करके लगता है की विकास के पथ पर निरंतर अग्रसर होने की चाह में कुछ खो गया है हमसे; कुछ हमारा था जो पीछे छूट गया है | हमे उसके खो जाने का एहसास तो है परन्तु उसे वापस पाने की चाह मर सी गयी है| देखा जाये तो एक व्यंग है जिसके प्रेषक भी हम हैं और हसी के पात्र भी हम ही हैं!
जो भी हो, आज इस माहौल में इन सभी विचारों को बहा दिया है मैंने इस नदी की धारा में और कुछ देर के लिए ही सही इस खोई हुई दुनिया का हिस्सा बन कर कुछ मीठी यादों से सजा लिया है अपने जीवन को!
--ऐश्वर्या तिवारी
2 comments:
really well written. marvelous stuff! pro level _/\_
(pardon me, i probably should have commented in hindi). :)
thank you! :)
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