Tuesday, March 8, 2011

हाय रे! दिनकर की पोथि ...

हाल के दिनों में मेरा झुकाव हिन्दी की तरफ बढ़ गया है | कारण तो स्पष्ट नहीं लेकिन जैसे की एक स्तंभ में, कल पढ़ रहा था - हिन्दी अपने अवसान में है ! आज कल देख कर मन पीडित हो जाता है इसकी दुर्दशा को |

 युवा पीढ़ी अपने आप को अँग्रेज़ी का चोला ओढ़ कर भले ही ' कूल ' दिखाए लेकिन इस तथ्य को कभी दरकिनार नहीं किया जा सकता की भारत की स्व-अभिव्यक्ति हिन्दी ही है | सिर्फ़ रेलवे स्टेशन्स पर और कुछ सरकारी दफ़्तरों में हिन्दी की महत्ता पर लिखे चाँद वाक्यों से मन तो बहल जाता है लेकिन घाव नहीं भरता | १४ सितंबर को हिन्दी दिवस पर अँग्रेज़ी अख़बारों से नदारद और हिन्दी अख़बारों में छपी एक संपादकिए से ज़्यादा स्थान हमने इस महान भाषा को देने ही नहीं दिया |

मुद्दा अंग्रेज़ी विरोधी होने का कतई नहीं है, वरन हिन्दी को उसका स्थान दिलाने का है | इस स्थिति के लिए हम क्या कम ज़िम्मेवार हैं ?? टीवी पत्रकारिता हो या प्रिंट मिडिया,गिरता स्तर सूचक है इस प्रश्न का- आख़िर क्यों जा रही है हिन्दी गर्त में | कक्षा आठवीं तक विषय में शामिल तो कर दिया लेकिन इसे अनिवार्य बनाने की पहल आज तक हमारे पदासिन नेताओं ने नहीं किया | आख़िर करें भी तो क्या

दिनकर और नीरज के साथ सहित्य भी चौपट हो गया | जो कुछ गिने-चुने बच गये, उन्होनें भी पापी पेट के लिए इसका परित्याग कर अंग्रेज़ी को अपना लिया! अवशेषों में अगर कुछ युवक प्रेरित भी हुए तो,उन्हें अपने तथा-कथित 'गेंग' से बहिष्कृत होने का डर ने जकर लिया | समाज और सत्ता की लड़ाई में हम अपने मातृभाषा को भूल गये....क्या विडंबना है !! सरकार ने प्रोत्साहन के नाम पर कुछ छात्रवृतियाँ शुरू तो करती हैं लेकिन नियती के रंग तो देखिए,उन पर भी हक विदेशी जमा लेते हैं | आख़िर हो भी क्यों ना , बदले में मिलती है उन्हे दो वर्ष का वीसा और हिन्दी के पतन पर शोध करने का मौका | अब इस परिवेश में हम कितनी भी सफाई दे दें , ग़ौर फ़रमाने लाइक बात यह है की हमने इस भाषा का गला घोंट कर रख दिया है ||

मैं इस पक्ष में नहीं हूँ की इससे ज़बर्दस्ती कार्य-चलन की भाषा बनाकर आने वाले पीढ़ियों के लिए,भाषा विचार की अभिव्यक्ति ना हो कर जटिल समस्या बन जाए | ज़रूरत इस बात है की आम जनता समझे,हिन्दी सिर्फ़ अष्टम सूची की भाषा ही नहीं,हमारे विचारों की गंगा है और स्तिथि एक ऐसे मोर पर ना पहुँचे जहाँ दिनकर की पोथि और सांस्कृत्यन की गठरी सिर्फ़ धूल फाँक कर रह जाए !!

1 comment:

Nawabi said...

hmm..
satyvachan... par is blog me aisa kuch bhi nhi jo humne phle nhi suna ya padha...hame uttar chahiye, samasya se to sabhi avgat hain...
aapne kal jo stambh me padha aur abhi jo likha, take bhar ka antar nhi hai dono me...
aapki bhasha par pakad prashansneey hai aur shabdon ka bhandaar bhi athaah hai...
aur likho ...
utkrisht hai