Saturday, May 7, 2011

माँ


वैसे तो कुछ रिश्तो से हमारा हर पल का नाता होता है, फिर भी शायद आज का दिन माँ को समर्पित किया गया है, ताकि हम उनसे वो सब कह सके जो रोज़ की भागा-दौर में कहना भूल जाते है. 


तेरी
 उँगलिओ के स्पर्श को
जो चलती थी मेरे बालो मे

तेरा
वो चुम्बन
जो अकसर  करती थी
तुम मेरे गालो पे

वो
स्वादिष्ट पकवान
जिसका स्वाद
नही पहचाना मैने इतने सालो मे
वो मीठी सी झिडकी
वो प्यारी सी लोरी
वो रूठना - मनाना
और कभी - कभी
तेरा सजा सुनाना
वो चेहरे पे झूठा गुस्सा
वो दूध का गिलास
जो लेकर आती तुम मेरे पास

मैने पिया कभी आँखे बन्द कर
कभी गिराया तेरी आँखे चुराकर
 आज कोई नही पूछता ऐसे
तुम मुझे कभी प्यार से
कभी डाँट कर खिलाती थी जैसे

Monday, May 2, 2011

जनतंत्र का जन्म

                                                      --रामधारी सिंह "दिनकर"