Saturday, June 30, 2012


कभी किसी बेवकूफ ने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए प्रस्तुत दोहा रचा --
                                      साईं इतना दीजिये जामे कुटुंब समाये;
                                      मैं भी भूखा ना रहूँ साधू भी भूखा ना जाये|

लिखने वाले ने लिख दिया, पढ़ने वालों को भी बहुत रास आया| अहा! क्या नेक विचार है| मज़ा आ गया! संतुष्टि की भावना ओवर फ्लो कर रही है| ये दोहा लेख-निबंधो-भाषणों के लिए अत्यंत ही महत्यपूर्ण रचना है| ना जाने कितने ही छात्रों ने इस ऑसम दोहे से शुरुआत कर के पुरुस्कार जीते होंगे|

पर आज-कल साईं थोड़े गुस्से में चल रहे हैं| कुटुंब को गोली मरो, खुद के संभालने लायक भी पैसे नहीं देते| मिश्र जी के पास आल्टो है, उन्हें होंडा सिटी चाहिए| साईं देते ही नहीं! सिन्हा साहब के पास सैमसंग एस II है, उन्हें एस III चाहिए| कितने समय तक साईं के पास रोते रहते हैं| शुक्ल जी के पास फ्लैट है, पर उन्हें अपने परिवार के लिए बंगला चाहिए| साईं दें तो सही! पड़ोस की मास्टरनी को गीतांजलि लाइफ स्टाइल से जेवर चाहिए| साईं ने नहीं दिया| साईं बहुत ज़ालिम हैं|

कहाँ है साईं? कुटुंब माई फुट ! पहले मेरा तो कुछ करो !

परसों दोस्तों के साथ डोमिनोज गया| पिज्जा के हुए कुल जमा १२०० रुपये और ४५० रुपये टैक्स के देने पड़ गए|५०० रुपये जो हमने टैक्सी के लिए बचा के रखे थे, वो टैक्स में चले गए| बस में आज कल कौन चलता है भला? दिन भर पसीना बहाने वाले मजदूर| वैसे हमारा मन तो के ऍफ़ सी भी जाने का था , लेकिन १६०० डोमिनोज के अमेरिका में बैठे मालिक को भेजने के बाद पता चला कि अब उसे दिवा-स्वप्न समझ कर भूल जाना चाहिए|

कहाँ तो "साधू भी भूखा ना जायें" और यहाँ तो अपने पेट पर ही आफत है| गर्मी कितनी ज्यादा है| फ़िर भी ३-४ ए-सी डब्बे ही रखते हैं ट्रेन में|स्लीपर में मजदूरों के साथ कौन चले, ऊपर से ये गर्मी-घर पहुँचते-पहुँचते उबाल देगी| साईं के मन में तनिक भी दया नहीं है| कुछ नहीं तो साईं को चाहिए था कि प्लेन के पैसे ही दे देते| ये साईं भी न..बाई गौड़..तू मछ है| आज कल वैसे भी घर में साधू कहाँ आते है! जो आते है वो घर से किसी को उठा कर ले जाते है, और २० लाख दक्षिणा में मंगवाते है| भाई, उनकी क्या गलती है! साईं ने उन्हें भी नहीं दिया| सरकारी नौकर १०-२० रुपये लेकर साईं को ढूंढते रहते हैं| उनकी भी अपनी मजबूरी है|

सभी साईं को ही ढूंढ रहे हैं| इच्छाएँ अनंत हैं| साईं भी परेशान हो गए हैं; ना जाने कहाँ छुपे बैठे हैं!!

-- हर्षवर्धन

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