Tuesday, May 22, 2012


पुरानी डायरी के उड़ते पन्नों के बीच से
छूट कर, आज़ाद होकर
तुम्हारी वो पसंदीदा नज़्म
अक्सर यूँ हवा में तैर जाती है
कुछ मेरे होठों पर भी लहराती है
टटोलती है हवा की सिहरन को
खोजती है कुछ खोये हुए सुर.
पर तुम्हारे संगीत को ना पाकर,
मेरी अधूरी तान से मायूस,
कुछ मजबूर सी होकर
बेबस,उन्ही किताबों में लौट जाती है|

सोचती हूँ तुम साथ होते तो ऐसा ना होता|

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