Sunday, February 26, 2012

सपना देखा है मैंने

अधूरे से ख्वाब, ख़्वाबों सी ज़िन्दगी!


हम सभी के हजारों सपने होते हैं| किसी को अमीर बनने का, किसी को वापस बच्चा बन जाने का,समय में आगे या पीछे जाने का,किसी का साथ पाने का,किसी जगह पर होने का, इत्यादि| कहते हैं कि सपनों और सच्चाई में बहुत फासला होता है| हम सब ये जानते भी हैं| फ़िर भी हम सपने देखने से थकते नहीं हैं| मेरा ये मानना है कि सपने देखना ज़रूरी है| चाहे लोग उसे खयाली पुलाव पकाना माने या वेल्लापंती कि निशानी ठहराएं| सपने देखने से ही हममे उन्हें पूरा करने की चाहत जागती है| सपने ही हमे कुछ पाने कि प्रेरणा देते हैं| सपने हमारे असंतोष की निशानी हैं पर फ़िर इसी संतोष को पाने के लिए तो हम सब कुछ करते हैं| और फ़िर जब तक हम कोई भ्रम ना पाल रहे हों, इसमें बुराई ही क्या है?

सपनों में हम वो ज़िन्दगी जी पाते हैं जो हमने हमेशा से जीना चाहते है| हमारे सारी आशाएं,तमन्नाएं, पूरी हो जाती हैं| सपने ज़िन्दगी के प्रति हमारे छुपे उत्साह को दर्शाते हैं| हाँ,कई बार ऐसा भी होता है कि हम डरावने सपनों की दहशत में जीते हैं| पर तब भी वो सपने झूठ नहीं होते| वो तो हमारी सोच के दर्पण की तरह होते हैं| हमे हमसे मिलाते हैं| जिस दिन हम अपने सपनों को पूरी तरह समझने लगेंगे, उस दिन हमने खुद को पूरी तरह जान लिया होगा| पर अगर हम सपनों में भी मतलब खोजने लगें तो सपने देखने का कोई मतलब ही नहीं रह जायेगा| सपने उलझे, रहस्यमय रूप में ही भले हैं| हमारे सपने हम सभी के लिए बहुत मायने रखते हैं| शायद यही वजह है कि हम उन्हें 'पाला' करते हैं|

~अनुमेहा

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