Sunday, July 24, 2011

कृष्ण कि चेतावणी









वर्षों तक वन में घूम घूम, बाधा विघ्नों को चूम चूम

सह धूप घाम पानी पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर
सौभाग्य न सब दिन होता है, देखें आगे क्या होता है
मैत्री की राह दिखाने को, सब को सुमार्ग पर लाने को
दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को
भगवान हस्तिनापुर आए, पांडव का संदेशा लाये
दो न्याय अगर तो आधा दो, पर इसमें भी यदि बाधा हो
तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रखो अपनी धरती तमाम
हम वहीँ खुशी से खायेंगे, परिजन पे असी ना उठाएंगे
दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशीष समाज की न ले सका
उलटे हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य साधने चला
जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है
हरि ने भीषण हुँकार किया, अपना स्वरूप विस्तार किया
डगमग डगमग दिग्गज डोले, भगवान कुपित हो कर बोले
जंजीर बढ़ा अब साध मुझे, हां हां दुर्योधन बाँध मुझे
ये देख गगन मुझमे लय है, ये देख पवन मुझमे लय है
मुझमे विलीन झनकार सकल, मुझमे लय है संसार सकल
अमरत्व फूलता है मुझमे, संहार झूलता है मुझमे
भूतल अटल पाताल देख, गत और अनागत काल देख
ये देख जगत का आदि सृजन, ये देख महाभारत का रन
मृतकों से पटी हुई भू है, पहचान कहाँ इसमें तू है
अंबर का कुंतल जाल देख, पद के नीचे पाताल देख
मुट्ठी में तीनो काल देख, मेरा स्वरूप विकराल देख
सब जन्म मुझी से पाते हैं, फिर लौट मुझी में आते हैं
जिह्वा से काढती ज्वाला सघन, साँसों से पाता जन्म पवन
पर जाती मेरी दृष्टि जिधर, हंसने लगती है सृष्टि उधर
मैं जभी मूंदता हूँ लोचन, छा जाता चारो और मरण
बाँधने मुझे तू आया है, जंजीर बड़ी क्या लाया है
यदि मुझे बांधना चाहे मन, पहले तू बाँध अनंत गगन
सूने को साध ना सकता है, वो मुझे बाँध कब सकता है
हित वचन नहीं तुने माना, मैत्री का मूल्य न पहचाना
तो ले अब मैं भी जाता हूँ, अंतिम संकल्प सुनाता हूँ
याचना नहीं अब रण होगा, जीवन जय या की मरण होगा
टकरायेंगे नक्षत्र निखर, बरसेगी भू पर वह्नी प्रखर
फन शेषनाग का डोलेगा, विकराल काल मुंह खोलेगा
दुर्योधन रण ऐसा होगा, फिर कभी नहीं जैसा होगा
भाई पर भाई टूटेंगे, विष बाण बूँद से छूटेंगे
सौभाग्य मनुज के फूटेंगे, वायस शृगाल सुख लूटेंगे
आखिर तू भूशायी होगा, हिंसा का पर्दायी होगा
थी सभा सन्न, सब लोग डरे, चुप थे या थे बेहोश पड़े
केवल दो नर न अघाते थे, धृतराष्ट्र विदुर सुख पाते थे
कर जोड़ खरे प्रमुदित निर्भय, दोनों पुकारते थे जय, जय .

रामधारि सिंह दिनकर

Saturday, July 16, 2011

एक बूँद

ज्यों निकल कर बादलों की गोद से।
थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी।।
सोचने फिर फिर यही जी में लगी।
आह क्यों घर छोड़कर मैं यों बढ़ी।।

दैव मेरे भाग्य में क्या है बढ़ा।
में बचूँगी या मिलूँगी धूल में।।
या जलूँगी गिर अंगारे पर किसी।
चू पडूँगी या कमल के फूल में।।

बह गयी उस काल एक ऐसी हवा।
वह समुन्दर ओर आई अनमनी।।
एक सुन्दर सीप का मुँह था खुला।
वह उसी में जा पड़ी मोती बनी।।

लोग यों ही है झिझकते, सोचते।
जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर।।
किन्तु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें।
बूँद लौं कुछ और ही देता है कर।।


-अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

Tuesday, July 12, 2011

मौसम

हवा में बसी है आज एक नयी खुशबू
तितलियों सा हसीन है मौसम
रंग हैं,हरियाली है,लगता है
पतंगों का मौसम है|

ये दिन जीवन का सबसे बेहतरीन तो नहीं
कई काम अभी भी अधूरे हैं,
कई लोग अभी भी रूठे हैं
पर आज खुशियाँ बिखरी हैं हर तरफ,जैसे
फूलों का मौसम है|

रंग तो हमेशा सुहाते थे मन को
आज जी चाहता है उन्हें ओठ लूँ तन पर
कारण तो जानूं ना,पर लगता है
होली का मौसम है|

दोपहर थी तो सूरज की तपिश भी भीनी सी लगी
रात आयी है तो
बिखरी चांदनी भी मनभावन है, लगता है
खुशदिली का मौसम है

वो पेड़ जो झेल रहा था सर्दी-गर्मी की मार
आज नए फूल खिले उस पर,
तो बड़ी विनम्रता से अर्पण किया उसने उन्हें अपने स्रोत पर
ये धरती भी रंगीन हो झूम उठी,आज
कृतज्ञ होने का दिन है,मानो
बसंत का मौसम है!

Wednesday, July 6, 2011

आँखें बहुत सी कहानियां सुनाती हैं

आँखें बहुत सी कहानियां सुनाती हैं,
दादी-नानी के किस्सों से कम दिलचस्प नहीं;
हर पल एक नयी दास्तान
कभी शरारती,नटखट,गुदगुदाने वाले किस्से
तो कभी यूँ ही संजीदा हो जाती हैं
आँखें बहुत सी कहानियां सुनाती हैं,

और न जाने कितने मौसम समेत रखे हैं इन्होने खुद में
कभी बसंती हवाओं सी इतराती, मस्त अदाएं;
तो कभी ज्येष्ठ की धुप सी सख्त हो जाती हैं;
और कभी सावन बटोरे नम हो जाती हैं;
आँखें बहुत सी कहानियां सुनाती हैं,

दिल का शीशा बन बैठती हैं ये आँखें
सारा हाल बयां कर जाती है;
कभी प्यार बरसाती हैं पर
अगर रूठ जाये तो एक झलक को भी तरसाती हैं
कभी-कभी आंसुओं के साथ हो जाती हैं
तो ढलते सूरज कि लालिमा लिए नज़र आती हैं;
आँखें बहुत सी कहानियां सुनाती हैं|


-ऐश्वर्या तिवारी